भारत की Green Hydrogen Mission 2025: ₹8 लाख करोड़ निवेश
भारत की ग्रीन हाइड्रोजन क्रांति: आत्मनिर्भर ऊर्जा की दिशा में बड़ा कदम, 2030 तक ₹8 लाख करोड़ निवेश और 6 लाख नई नौकरियां
भारत की ऊर्जा यात्रा अब एक निर्णायक मोड़ पर है। देश जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाकर स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। विकसित भारत 2047 और नेट-ज़ीरो 2070 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत अब ग्रीन हाइड्रोजन को अपनी ऊर्जा क्रांति का मुख्य आधार बना रहा है। यह न केवल स्वच्छ ऊर्जा का विकल्प है, बल्कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा, औद्योगिक विकास और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारत सरकार ने वर्ष 2023 में राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission - NGHM) की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य देश में ग्रीन हाइड्रोजन का एक सशक्त पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना है, जिससे कठिन-से-कठिन उद्योगों को डीकार्बोनाइज किया जा सके और जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम हो। यह मिशन केवल एक ऊर्जा परियोजना नहीं है, बल्कि यह भारत को औद्योगिक प्रतिस्पर्धा, आयात में कमी और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में अग्रसर करने वाला एक रणनीतिक कदम है।
ग्रीन हाइड्रोजन वह हाइड्रोजन है जो सौर या पवन ऊर्जा जैसी अक्षय स्रोतों से उत्पन्न की जाती है। इस प्रक्रिया में पानी को इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जाता है। भारत सरकार द्वारा तय मानकों के अनुसार, यदि हाइड्रोजन के उत्पादन के दौरान कुल उत्सर्जन प्रति किलोग्राम हाइड्रोजन पर 2 किलोग्राम CO₂ से कम है, तो उसे “ग्रीन हाइड्रोजन” कहा जाता है। यह हाइड्रोजन बायोमास या कृषि अपशिष्ट से भी तैयार की जा सकती है, बशर्ते उत्सर्जन सीमा से नीचे रहे।
राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य भारत को वैश्विक स्तर पर स्वच्छ हाइड्रोजन उत्पादन में अग्रणी बनाना है। 2030 तक 125 GW नई अक्षय ऊर्जा क्षमता केवल ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए स्थापित की जाएगी। ₹8 लाख करोड़ से अधिक का निवेश आकर्षित किया जाएगा। 6 लाख से अधिक रोजगार अवसर सृजित होंगे। ₹1 लाख करोड़ से अधिक का जीवाश्म ईंधन आयात घटेगा और हर साल 50 MMT ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी होगी।
मई 2025 तक, 19 कंपनियों को कुल 8.62 लाख टन वार्षिक ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता के लिए आवंटन दिया गया है, जबकि 15 कंपनियों को 3,000 MW वार्षिक इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण क्षमता के लिए मंजूरी दी गई है।
राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन चार मुख्य स्तंभों पर आधारित है — नीति एवं नियामक ढांचा, मांग सृजन, अनुसंधान और नवाचार, तथा पारिस्थितिकी तंत्र विकास। मिशन का कुल वित्तीय प्रावधान ₹19,744 करोड़ (FY 2029-30 तक) है, जिसमें ₹17,490 करोड़ SIGHT योजना के लिए, ₹1,466 करोड़ पायलट परियोजनाओं के लिए, ₹400 करोड़ अनुसंधान एवं विकास के लिए, और ₹388 करोड़ अन्य घटकों के लिए निर्धारित हैं।
Strategic Interventions for Green Hydrogen Transition (SIGHT) योजना के तहत इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण और ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए वित्तीय प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। यह कार्यक्रम घरेलू विनिर्माण क्षमता को मजबूत बनाकर भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में प्रतिस्पर्धी बनाएगा।
अक्टूबर 2025 में नव एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने तीन प्रमुख बंदरगाहों — दीendayal Port (गुजरात), V.O. चिदंबरनार Port (तमिलनाडु), और पारादीप Port (ओडिशा) को ग्रीन हाइड्रोजन हब के रूप में मान्यता दी है। ये हब उत्पादन, भंडारण, उपभोग और निर्यात के लिए एकीकृत केंद्र के रूप में कार्य करेंगे।
अप्रैल 2025 में लॉन्च की गई ग्रीन हाइड्रोजन प्रमाणन योजना (GHCI) देश में उत्पादित हाइड्रोजन को “ग्रीन” घोषित करने के लिए एक राष्ट्रीय मानक ढांचा प्रदान करती है। इस योजना के तहत केवल वही हाइड्रोजन “ग्रीन” कहलाएगी जो नवीकरणीय ऊर्जा से बनी हो और निर्धारित उत्सर्जन सीमा के भीतर हो। उत्पादन प्रक्रिया की ट्रैसेबिलिटी और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी। घरेलू उपयोग या सरकारी सब्सिडी पाने वाले सभी उत्पादकों के लिए ‘फाइनल सर्टिफिकेट’ अनिवार्य होगा। इस पूरी प्रक्रिया का संचालन Bureau of Energy Efficiency (BEE) द्वारा किया जा रहा है।
SHIP (Strategic Hydrogen Innovation Partnership) के माध्यम से सरकार सार्वजनिक-निजी साझेदारी को प्रोत्साहन दे रही है ताकि भारत उन्नत हाइड्रोजन तकनीकों में अग्रणी बने। इस कार्यक्रम के तहत ₹400 करोड़ का आरएंडडी फंड तैयार किया गया है। अब तक 23 प्रमुख परियोजनाओं को समर्थन दिया गया है, जिनमें उत्पादन, सुरक्षा प्रणाली, भंडारण और औद्योगिक उपयोग शामिल हैं। ₹100 करोड़ का “Call for Proposals” स्टार्टअप्स के लिए जारी किया गया है, जिसमें प्रत्येक परियोजना को ₹5 करोड़ तक की फंडिंग दी जाएगी। जुलाई 2025 में R&D का दूसरा चरण शुरू हुआ जिसमें 30 से अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रस्ताव EU–India Trade and Technology Council के तहत मिले हैं।
भारत ने ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में कई देशों के साथ साझेदारी की है। फरवरी 2025 में भारत–यूके साझेदारी के तहत हाइड्रोजन सुरक्षा और मानकीकरण पर कार्यशाला आयोजित की गई ताकि वैश्विक व्यापार और तकनीकी सहयोग बढ़े। नवंबर 2024 में Solar Energy Corporation of India (SECI) ने जर्मनी की H2Global Stiftung के साथ समझौता किया ताकि भारतीय ग्रीन हाइड्रोजन का अंतरराष्ट्रीय निर्यात सुगम हो सके। अक्टूबर 2025 में सिंगापुर की Sembcorp Industries ने पारादीप और V.O. चिदंबरनार बंदरगाहों के साथ हाइड्रोजन और अमोनिया हब विकसित करने के लिए समझौता किया।
ग्रीन हाइड्रोजन अब भारत की ऊर्जा नीति का केंद्रबिंदु बन चुका है। यह देश को कम-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर करते हुए औद्योगिक परिवर्तन की नींव रख रहा है। राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन न केवल स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ा रहा है बल्कि घरेलू नवाचार, वैश्विक निर्यात क्षमता, और ऊर्जा आत्मनिर्भरता को भी सशक्त बना रहा है।
2030 तक भारत का लक्ष्य स्पष्ट है — एक ऐसा राष्ट्र बनना जो स्वच्छ, सुरक्षित और आत्मनिर्भर ऊर्जा प्रणाली पर आधारित हो। ग्रीन हाइड्रोजन इस लक्ष्य की दिशा में भारत की सबसे बड़ी छलांग है — एक ऐसी क्रांति जो आने वाले दशकों में भारत को दुनिया के ऊर्जा नेतृत्व के केंद्र में स्थापित करेगी।

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